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इस्लाम:औरत को बराबरी का दर्जा और हिजाब

मेरा भारत महान
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downloadपरमात्मा/ अल्लाह अर्थात् जिस ने इस पुरे संसार की रचना की उस ने ही मानव की रचना करते समय पुरुष वे नारी की भी रचना की ताकि दोनों एक दुसरे से आनंद ले सके और प्रथ्वी पर अपना जनाधार बढ़ा सके। अल्लाह/ परमात्मा के नजदीक पुरुष वे नारी को एक समान माना है। इस की दलील पवित्र कुरान में है जिसका विवरण निम्न लिखित है –

महिलाएं तुम्हारे लिये परिधान (लिबास) हैं और तुम (पुरुष) उनके लिये परिधान (लिबास) हो। पवित्र कुरान 02:187

जिस तरह पुरुष – महिला दोनों के महत्व और जरूरत के लिहाज से एक (समान) है, साथ ही दोनों के लिए व्याख्या भी समान है। पवित्र कुरान के इस नियम में जीवन साथी (पति – पत्नी) को एक दूसरे के लिए परिधान की उपमा देकर बता दिया के दोनों बराबर हैं दोनों में कोई असामनता नहीं है। दोनों एक दुसरे के पूरक हैं।

यदि हम वस्त्र और परिधान की विशेषताएं देखे तो हम को मालूम होगा के वस्त्र और परिधान से हमारे समाज में किया प्रभाव पड़ता है।

किसी भी प्रकार के कपड़े शरीर की शोभा (सुन्दरता) का कारण बनते हैं, कपड़े मनुष्य के उन अंगों को छुपता है जो समाज को दिखना संस्कारों के विपरीत हो, एवं शारीर की रक्षा करने के काम आता है।कपड़े मनुष्य को आनंद देता है। कपड़े मनुष्य को इस बात का आभास कराता है की हम मानव हैं,जानवर नहीं हैं।

और यही गुण पति – पत्नियों के बीच भी मौजूद हैं कि दोनों एक दूसरे की शोभा एक दुसरे के लिए महिमा बने रहते हैं। दोनों एक दूसरे की शोभा का कारण बनते हैं और एक दूसरे को सुरक्षित रखते हैं। तथा पति-पत्नी एक दुसरे से आनंद लेते हैं।

पुरुष और महिला के बीच प्रकृति ने एक आकर्षक रखा है जो मानव जाति के अस्तित्व के लिए आवश्यक है, और खतरनाक भी। इस्लाम ने प्राकृतिक और शांतिपूर्ण,कानून के दायरे में रहते हुए इस इच्छा को पूरा करने की ताकीद की है और आधा दीन इसी में बताया है, जब कि इस से फैलने वाली समस्या की राह रोकने के लिए भी नियम बनाये हैं जी आप बिल्कुल सही समझे मैं आज बात कर रहा हूँ इस्लाम में परदा करने के कायदे कानून की कुछ लोग परदे की प्रथा को अत्याचार तो कुछ लोग मुस्लिम महिलाओं के दबाने कुचलने की प्रथा मानते हैं जबकि पवित्र कुरान परदे की प्रथा को केवल महिलाओ पर लागु नही करता है बल्कि पुरुषो को भी परदे करने का आदेश देता है। पवित्र कुरान के आदेश निम्लिखित है –

आप मोमिन (आस्तिक) पुरुषों को कह दो की वह अपनी निगाहें नीची रखा और अपनी शर्म गाहों (शर्म हया/लाज) की हिफाज़त करें। (पवित्र कुरान 24:30)

और मोमना महिलाओं से भी कह दीजिये कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्म गाहों (शर्म हया) की रक्षा करे, और अपने (ज़ेबाइश) Beautification को प्रकट न करें (सब के सामने), केवल उसके जो बा ज़ाहिर हो और अपने गरेबानों (सिने) पर अपनी ओढनिया (दुपट्टा) डाले रखें और अपनी बनावट(फिगर) का पता न होने दें। (पवित्र कुरान 24:31)

अर्थात् एक हर पुरुष को चाहिये की जब वे किसी महिला को देखे तो अपनी निगाहें नीची कर ले जिस से के माध्यम से वे अपनी आन्तरिक आत्मा को पवित्र रख सकता है ऐसे करना हर एक मुस्लमान पर वाजिब (आवश्यक) है।

इसी प्रकार इस्लाम ने महिला को फूल कहा है इसी लिए उसकी आन्तरिक आत्मा को पवित्र रखने के लिए आवश्यक रखा गया की वे भी अपनी निगाहें नीची कर ले और उसकी (महिला) अपने रक्षा- सुरक्षा के लिए अपने गुप्त अंगों Beautification को प्रकट न करें और अपने गरेबानों पर अपनी ओढनिया डाले रखे और शारीर की खुबसूरत बनावट को सब के सामने पेश ने करे और इसी को परदा कहते हैं।

वैसे इसी प्रकार का परदा हिन्दू समाज के संस्कारी परिवारों में आज भी किया जाता है। और इसी वजह से हिन्दू समाज में साड़ी वे कुर्ते को महिला का लाज कहा जाता है। एवं मुसलमानों में बुरका।

यह बात भी हमेशा याद रखनी चाहिये के जितना कीमती और सुन्दर मोबाइल होता है उतना ही उसकी रक्षा के लिए मोबाइल कवर वे स्क्रीन कवर लगाया जाता है।

जहाँ एक तरफ महिलाओं के सम्मान की हम बात करते हैं वही पूरी दुनिया में  महिलाओं को आज कमाई (कारोबार) का ऐसा ब्रांड बनाया हुआ है की अबला नारी की इज्ज़त शर्म हया के आभूषणों को उतारवा कर अपने लाभ के के लिए उसकी आहुति दी जा रही है किसी भी कारोबारी जगत में चले जाये महिला की आज़ादी के नाम पर एडवर्टाइजिंग के माध्यम से ग्राहकों को लुभाने के लिए महिला का इस्तेमाल हो रहा है जिस प्रकार से टी वी-अख़बार-फिल्में आदि  के जरिये, एडवर्टाइजिंग के माध्यम से अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है वो कही न कही महिलाओ के अधिकारों का हनन नही है तो और किया है? यह अत्याचार तो नहीं तो और किया है? आज कल तो टी वी-अख़बार-फिल्में- सीरियलों को परिवार के साथ नहीं देख सकते ऐसे हम इस का दोष किस पर डाले खरीदारों के या बेचने वाली की ?

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