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3 तलाक़ पर राजनीति क्यों ?

मेरा भारत महान
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हज़रत मोहम्मद (स.अ) फ़रमाते हैं जो व्यक्ति किसी औरत से शादी करता है तो उसे चाहिए कि उसका सम्मान करे।

आज कल हमारे देश में महिलाओ के अधिकारों को दिलाने के लिए लड़ाई जारी है या यु कहूँ मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को दिलाने के लिए लोग उत्साहित हैं चले किसी बहाने से महिलाओ को उसके अधिकार मिल जाये गे उसके लिए आप लोगों को बधाई दे देता हूँ ।

पर यहाँ मेरा यह कहना है के जिस अधिकार को मुस्लिम महिलाये मांग रही हैं वो उनको इस्लाम ने पहले ही दिया है फर्क इतना है के धर्म के कुछ ठेकेदारों ने अशिक्षा के कारण इस्लाम में अपनी सुविधा अनुसार कानून बनाये जिस में से एक मामला ३ तलाक का भी है जबकि पवित्र कुरान की रौशनी में ऐसा कही हकूम नहीं है ।

Shia

भारत की मुस्लिम महिलाये तलाक की विधि पर सवाल उठा रही है जो एक प्रकार से उनकी मांग ठीक भी है भारत की मुस्लिम महिलाये सुप्रीम कोर्ट से मांग यह है कि तलाक की विधि को इस्लाम एवं पवित्र कुरान के अनुरोप किया जाये, हालाँकि मुस्लिम समाज का एक हिस्सा शिया समुदाय के यहाँ इस्लाम एवं पवित्र कुरान के अनुरोप ही तलाक देने का प्रावधान है,  पर कुछ लोग मुस्लिम महिलाओ का सुप्रीम कोर्ट में जाना असंवेधानिक बता रहें है क्यूंकि वे जानते हैं अगर सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम महिलाओ की मांग को मान लिया तो लोगों की दुकाने बंद हो सकती हैं ।

जो लोग विरोध कर रहें उनको सोचना होगा की पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत तकरीबन 22 मुस्लिम देशों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तीन तलाक की प्रथा खत्म कर दी है. इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल हैं तो आखिर भारत के मुस्लमान क्यों नही स्वीकार सकते ? सत्य यह है की इस विवाद को राजनीति की चाशनी में डूबा दिया गया है जबकि इस मसले को राजनीति से दूर रखना चाहिये ।

दरअसल इस्लाम में शादी करना जितना आसान काम है उतना ही तलाक देना कठिन काम है, पर कुछ धर्म के ठेकेदारों ने जिहालत (अशिक्षा) और लालची होने की बिना पर शादी को इतना कठिन बना दिया के आज एक ग़रीब पिता  अपनी लड़की का विवाह कराने के लिए रात दिन महनत कर के पैसा कमाकर लड़की के जहेज़ की तैय्यारी करता है ,और अपनी हैसयत से ज्यादा करता है और उसके बाद लड़के वाले काफी दिनों तक उसका खून चूसते रहते हैं, पर किया आपको यह मालूम है की ऐसी प्रथा केवल हमारे भारत में ही है क्यूंकि यह हमारे भारत की संस्कति का हिस्सा है जो की एक कुप्रथा है जिस के लिए हमारे देश में बहू (दुल्हन) को जिंदा जला दिया जाता है, जब की इस के लिए कानून भी बना हुआ है , समाज किसी कानून बनाने से नहीं बदलता बल्कि मानसिकता बदलने से समाज सुधरता है।

कहना का तात्पर्य यह है कि कोई धर्म अन्याय की बात नहीं करता पर हमारा समाज ऐसी ऐसी प्रथाओ को अपना लेता है जिस के कारण मानवजाति के अधिकारों का हनन होता है ।

अगर आप इस्लाम के अनुयाई है, यदि आप आप पढ़े लिखे हो तो इस्लाम में शादी यानी “निकाह” आप खुद भी पढ़ सकते है पर तलाक देने के लिए आप किसी मोलवी के माध्यम से कुछ अरबी के कलमात (मन्त्र) पढवाने जरूरी हैं और साथ में 2 गावह होने भी जरूरी हैं और अगर ऐसा नहीं किया गया तो भले ही पति पुरे दिन –रात तलाक तलाक तलाक का मन्त्र पढ़ते रहे उसकी तलाक हो ही नहीं सकती।

दूसरी बात तलाक बिना किसी तथ्य के नही दी जा सकती है , गुस्से, दीवानगी की हालत में तलाक दी ही नही जा सकती , तलाक देने का अर्थ किसी एक पर अत्याचार करना नहीं होना चहिये, बल्कि दोनों की रज़ा मंदी से तलाक दी जा सकती है, इसी लिए तलाक देने के बाद 3 माह का समय दिया जाता है ताकि पति पत्नी अच्छे से सोच विचार कर लें, और अगर 3 माह के बीच दिल बदल जाये और एक दुसरे में समझोता हो जाये तो दुबारा पति पत्नी की तरह रह सकते हैं, 3 बार अपने मुह से तलाक कहने से तो तलाक हो किसी भी हालत में नहीं सकती ।

दरअसल जब अरब में इस्लाम के प्रवक्ता हज़रत मोहम्मद साहब ने अपनी आंखे खोली तो चारों ऑर महिलाओ के ऊपर अत्याचार ही अत्याचार ही नज़र आ रहा था यहाँ तक के लोग बेटी होने पर जिंदा दफना दिया करते थे ठीक उसी प्रकार से जैसे आज हमारे देश में कुछ ऐसे समाज हैं जो लड़की को जन्म होने से पहले ही उसकी हत्या कर देते हैं या फिर लड़की की माँ की हत्या कर दी जाती ताकि वो दूसरी शादी कर सके और अपने वंश को आगे बढ़ाये ।

इसी प्रकार की कुरीतियाँ को जब अरब में इस्लाम के प्रवक्ता हज़रत मोहम्मद साहब ने देखा तो अल्लाह के हुकुम (निर्देष) अनुसार महिलाओं के अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ उठाई ।

उस समय अरब के लोग शादी तो कर लेते थे पर जब उनका दिल भर जाता था तो उनको छोड़ दूसरी महिला से विवाह कर लेते थे, और पुरानी पत्नी को पलट कर देखते भी नहीं थे , महिलाओं को अपनी जागीर समझ कर उन पर हुकुम चलते थे और अत्याचार करते थे ।

इस वजह से एक मजबूत तलाक देने का नियम बनाया गया ताकि महिला आजाद हो जाये और दूसरी शादी कर सके या अपना जीवन खुद अपनी इच्छा से जी सके।

हज़रत मोहम्मद साहब ने लड़की होने पर उसको जिंदा दबाने की प्रथा को रोका, विवाह  में महर की राशी रखी, महर की राशी लड़के के ऊपर वाजिब करार दिया गया एवं उस राशी पर केवल महिला का धिकार रखा गया, और तो और जहाँ पूरी दुनिया में महिलाओं को पुरूषों की जागीर समझ पर पति की मौत होने के बाद जिंदा पत्नी का भी आग में अंतिम संस्कार कर दिया जाता था, और जहाँ पूरी दुनिया में महिलाओं को माँ/बाप की सम्पत्ति- पति की संपत्ति से वंचित रखा जाता था वही इस्लाम ने सब से पहले महिलाओं को माँ/बाप/पति की सम्पत्ति में अधिकार दिया इसी के नतीजे में आज अरब की मुस्लिम महिलाये मजबूत हैं।

आज  मुस्लिम  महिलाये न किसी जहेज़ की वजह से जलाई जाती है और न कोई मुस्लमान अपनी बेटी की हत्या करता है, और तो ओर अरब की मुस्लिम महिलाये अपनी इच्छा अनुसार अपना जीवन व्यापन कर रही हैं।

हाँ आप यह कह सकते हैं की भारत की मुस्लिम महिलाये अभी बहुत पीछे हैं वो इस लिए क्यूंकि मुस्लिम समाज भारत की कुप्रथाओ से अभी तक बाहर नही आ सकी हैं।

हम सभी को भारत की कुप्रथाओ को त्यागना होगा जब ही हमारा देश एक मजबूत देश बनेगा एवं महिलाओ को न्याय मिलेगा, केवल 3 तलाक की कुप्रथा की आज़ादी दिलाने से देश नही बदलेगा बल्कि पुरे देश में जहाँ जहाँ महिलाओ के खिलाफ कुप्रथाएं हैं उनको रोकने की आवश्कता है।

जय हिन्द

Owrat Ek Phol

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